कोविड-19 महामारी में साड़े 5 साल से डिग्री धारी होम्योपैथी चिकित्सक क्यों नहीं मात्र एलोपैथी ही क्यों या फिर झोलाछाप क्यों ?? – डॉ रमेश प्रेमी
भोपाल/नरसिंहपुर केसरी- सरकार की गलत नीतियों के कारण या तो उनको एलोपैथिक चिकित्सक चाहिए या फिर झोलाछाप या बिना डिग्री धारी, नहीं चाहिए तो साडे 5 साल डिग्री धारी होम्योपैथी चिकित्सक आयुर्वेदिक, यूनानी चिकित्सक
क्यों और किस कारण से क्या इसमें मानव अधिकार आयोग कुछ बोलेगा लोगों के स्वास्थ्य के साथ खुले तो से खिलवाड़ हो रहा है पूरे विश्व में हाहाकार मचा है भारत देश में हाहाकार मचा है उसके बावजूद भी मानव अधिकार चुप है जहां देखो वहां लोगों के साथ मानव के साथ अत्याचार अन्याय और कोरोनावायरस की वजह से मौतें हो रही हैं मानव अधिकार चुप क्यों के चुप रहने के लिए मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई। भारत की जनता मानव अधिकार आयोग से पूछती है??
एक तरह की चिकित्सा पद्धति पर निर्भरता एकदम तबाही का कारण ना बन जाए?? जनसंख्या प्रतिदिन बढ़ रही है लोगों की और समस्याओं कई नई बीमारियां आ रही है कई नई चुनौतियां स्वास्थ्य में देखी जा रहे हैं??
बहुत सोच विचार करने की है एक बात है पूरे विश्व में भारत देश ऐसा देश है जिसकी जनसंख्या विश्व की दूसरे नंबर की जनसंख्या है भारत देश में 4 तरह की चिकित्सा पद्धति प्रचलन में शासन द्वारा मान्यता प्राप्त है नंबर 1 एलोपैथी चिकित्सा पद्धति, दूसरे नंबर पर होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति, चौथे नंबर पर आती यूनानी चिकित्सा पद्धति, इन सभी के ग्रेजुएट डॉक्टर हैं जिसकी डिग्री साडे 5 साल वर्ष संपन्न होती है किस विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की डिग्री मिलती है उसी विश्वविद्यालय सभी को डिग्री दी जाती है, एमबीबीएस बीएचएमएस बीएएमएस , बी यू एम एस, प्रवेश लेने के लिए स्टेट गवर्नमेंट ऑफ भारत शासन एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट लेता है उसकी मेरठ के आधार पर सभी को एडमिशन मिलती है पहले जो व्यवस्थाएं थी उनके अनुसार प्रवेश मिलता था मेरठ के आधार पर आज जो व्यवस्थाएं हैं उसके आधार पर प्रवेश मिलता है सभी के लिए सभी चिकित्सकों के लिए बायो साइंस लेना अति आवश्यक है इसके बिना आपको किसी भी चिकित्सा पद्धति का डॉक्टर नहीं बनाया जा सकता है मतलब आपको बेसिक साइंस का आना अति आवश्यक, उसके बाद सभी तरह की चिकित्सा पद्धतियों में मॉडर्न चिकित्सा पद्धति के सभी विषय प्रैक्टिकल एलोपैथी चिकित्सा पद्धति है चिकित्सकों के द्वारा क्लासरूम स्टडी कराई जाती है प्रैक्टिकल कराए जाते हैं प्रैक्टिकल क्लीनिकल एक्सपीरियंस इसी तरीके से कराए जाते हैं जैसी एमबीबीएस में कराएं जाते हैं, बस फार्मोकोलॉजी सभी चिकित्सा पद्धतियों की अलग है लेकिन सभी में दवाइयां बोली है सोर्स वही है बनाने का तरीका अलग अलग है प्रेजेंटेशन का तरीका अलग है सभी का मकसद एक ही समान है रोग मुक्ति जल्दी से जल्दी मृत्यु दर सबसे कम हो, बीमारियां हो ही ना उसके कंट्रोल करने के उपाय इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय, सुरक्षा एवं उपाय अच्छी हो उनके उपाय, एक ही समान है , फिर भी यह सरकार की भूल है इस कोरोना महामारी में सबसे बड़ी भूल की है कि सभी चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों का और चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग कोरोना रोकथाम में नहीं किया गया जैसा कि एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का शुरू से किया गया उसी तरीके से होम्योपैथी आयुर्वेद और यूनानी सिद्धा योगा सभी का उपयोग होना अति आवश्यक उनके चिकित्सकों के द्वारा जनता को परामर्श मिलना अति आवश्यक था और इसके डिजास्टर एक्ट मैनेजमेंट के तहत गाइडलाइंस होना जरूरी थी कि जो घर पर ही हैं उनके लिए क्या आवश्यकता है जो कम गंभीर हैं उनके लिए क्या आवश्यकता है जो अति गंभीर हैं जिनको अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है उनके लिए क्या उपाय है यह सब पहले से ही पिलानी में होना चाहिए लेकिन सरकार ने इन सभी चीजों के लिए बहुत देर की मात्र एक ही चिकित्सा पद्धति पर निर्भरता यह प्रमाणित करता है कि हम सवा अरब जनता के स्वास्थ्य के साथ और उनके जीवन के साथ खिलवाड़ ही कर रहे हैं क्योंकि एक बात अति आवश्यकता से बताना चाहता हूं डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत 1 साल में सभी चिकित्सा पद्धतियों के डॉक्टरों की मनमानी शर्तों पर भर्तियां हुई है कम वेतनमान के आधार पर कभी भी निकाल देना उसकी कोई गारंटी नहीं यह भी लिखा है कि आपको सरकारी कर्मचारी ना माना जाए इतने अपमान के साथ सरकार की हर गाइडलाइंस का पालन करने वाले महान चिकित्सक होम्योपैथी, आयुर्वेदिक यूनानी, ऐसे चिकित्सक हैं जिनमें बहुत महान कार्य किए कम वेतन में फ्रंटलाइन वर्कर बनकर जनता के लिए देवदूत के समान काम कर रहे हैं अपनी और अपने परिवार की जान जोखिम में डालते हुए मैं फिर बोलूंगा कम वेतन में भी ज्यादा वेतन पाने वालों से अधिक कार्य कर रहे हैं अधिक जोखिम भरा कार्य कर रहे हैं जिसकी जान जाने की कोई गारंटी नहीं उनके परिवार की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं उसके बावजूद भी यह अपने भारत के मां भारती के पुत्र पुत्रियां अपने देशवासियों की दिन-रात सेवा कर रहे हैं और सरकार इनके बारे में जिनकी साडे 5 साल की डिग्री है सरकार को फीस दी है साडे 5 साल तक पढ़ाई की है कोई भी किसी भी तरह का संरक्षण इनको नहीं मिलता है मिलता है तो अपमान मिलता है, या तो सरकार के लिए एमबीबीएस डॉक्टर चाहिए, या फिर जिनके पास कोई डिग्री नहीं है झोलाछाप है वह चाहिए लेकिन होम्योपैथी आयुर्वेदिक यूनानी चिकित्सक नहीं चाहिए क्यों किस कारण से इनकी डिग्री साडे 5 साल क्यों कराई जाती है सरकार के ऊपर मानव अधिकार आयोग मैं शिकायत होना चाहिए कि साढे 5 साल की डिग्री देने के बाद इन चिकित्सकों को झोलाछाप बोला जाता है इन चिकित्सकों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में नहीं लिया जाता है जबकि झोला छापों से सेवा ली जा रही है तो फिर यह डिग्री साडे 5 साल की सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कालेजों से दी जाती है जिन चिकित्सकों से प्रशिक्षण बनाया जाता है जिन विश्वविद्यालय डिग्री देते हैं जो काउंसिल मान्यता प्राप्त रजिस्ट्रेशन देती हो सरकार की केंद्रीय शासन और राज्य शासन के अधीन होती है, तो फिर इनके साथ दुर भाव क्यों किया जा रहा है उनके ऊपर मानहानि का केस दर्ज होना चाहिए इतने दिनों से होम्योपैथी आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति की चिकित्सकों के साथ धोखा किया गया जनता के साथ धोखा किया गया उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया गया जिससे अधिक से अधिक जाने जाने के लिए सरकार और सरकार में बैठे हुए प्लानिंग बनाने ही जिम्मेदार है उनकी गलत पिलाने की वजह से एक ही चिकित्सा पद्धति पर निर्भरता की वजह से यह स्थिति निर्मित हुई नहीं तो जब सरकार ने करोड़ों अरबों रुपए होम्योपैथी आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा चिकित्सकों को बनाने के लिए उसी जनता के टैक्स से डिग्री दी साडे 5 वर्ष की तो इनसे सेवा क्यों नहीं ली जा रही जब भी कोई आफत आती है देश के ऊपर जनता के ऊपर तो हम देशवासियों से ही सुरक्षा की उम्मीद करते हैं जैसे एक परिवार पर कोई आफत आती है तो सिर्फ मुखिया के ऊपर निर्भरता नहीं है पूरे परिवार के लोगों को मिल कर के उस आफत से निपटना होता है तभी पूरा परिवार सुरक्षित हो पाता है यह मुखिया की जिम्मेवारी तो वह अपने परिवार की किस तरह से मदद ले जिससे नुकसान कम हो फायदा ज्यादा हो, हमारे भारत देश की शासन व्यवस्था ऐसी है संसाधन बहुत अधिक है लेकिन उनका मैनेजमेंट सही तरीके से नहीं किया जाता है जिस से क्या होता है नुकसान अधिक होते हैं फायदे कम होते हैं, जैसे हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है जब कृषि की पैदावार होती है किसान मारा मारा पड़ता है उसके अनाज को खरीदने वाला सही दाम में कोई नहीं खरीदा है सरकार खुद नहीं खरीदती है, दोनों रितु की फसलें गलत तरीके की पॉलिसी की वजह से आज भी बर्बाद होती है , इसको अन्नदाता कहते हैं उसको ही बर्बाद कर दिया जाता है आज तक वह भारत देश का किसान ऐसी प्लानिंग सरकार ने बनाई है जिससे वह हमेशा कर्जदार रहता है, कर्ज के साथ मर जाता है, भारत देश में गरीबी, भुखमरी अधिक है, यह बात सच है कि हम सबसे ज्यादा अनाज पैदा करते हैं यह प्रतिवर्ष अनाज को खराब किया जाता है जिससे किसान गरीब रहता है, कर्जदार बना रहता है गरीबों को सस्ता अनाज नहीं मिल पाता है ।
उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है हम सब मिलकर सही प्लानिंग नहीं करने की वजह पैसा अधिक खर्च करके सभी को सही समय पर सुविधाएं देने में विफल हो रही है इसी तरीके से कोरोना महामारी में भी विफल हो रही है। मानव अधिकार आयोग क्या कर रहा है भारत देश का काय के लिए बनाया गया। जब यह आयोग कुछ बोलता ही नहीं है मानव अधिकारों के हनन हो रहे हैं स्वास्थ्य के साथ खेला जा रहा है।
धन्यवाद
डॉ रमेश कुमार प्रेमी
बीएचएमएस, सर्टिफिकेट कोर्स एडवांस होम्योपैथी चिकित्सा विशेषज्ञ, एमडी होम्योपैथी मेडिसन
पूर्व जुड़ा प्रेसिडेंट शासकीय होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल भोपाल मध्य प्रदेश
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फाउंडर एवं वरिष्ठ संरक्षक-ऑल इंडिया होम्योपैथी मेडिकल एसोसिएशन
12 साल से निरंतर होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से उपचार करते हुए निरंतर आपकी सेवा में विभिन्न राष्ट्रीय चैनलों एवं आकाशवाणी दूरदर्शन प्रिंट मीडिया एवं न्यूज़पेपर सभी में होम्योपैथी चिकित्सा से संबंधित रोगों की रोकथाम एवं उनके उपचार चाहे सभी तरह के सभी उम्र के लोगों के लिए होम्योपैथिक इतनी उपयोगी, समय-समय पर होम्योपैथी के प्रति जन जागरूकता मैं प्रस्तुत करता रहता हूं होम्योपैथी से संबंधित लोगों द्वारा कुछ चिकित्सकों द्वारा भ्रांतियां फैलाई जाती हैं इसके संबंध में भी बताता रहता हूं।