ग्वालियर

भारत विकास परिषद् की ग्वालियर शाखा द्वारा 57वां स्थापना दिवस,स्वामीश्री सत्यमित्रानंद गिरि”की स्मृतिपूर्वक सम्पन्न हुआ

ग्वालियर- भारत विकास परिषद् भारत राष्ट्र को अपने सेवा संकल्पकों के लक्ष्यपूर्ति सहित भारतीय राष्ट्रीय जीवनमूल्यों के संरक्षण एवं सेवाभावी रचनात्मक कार्यों के लिये समर्पित संगठन है,जिसकी स्थापना आज से56वर्ष पूर्व हुई थी। अनेक उपलब्धियों सहित हम सब उसका 57वां स्थापना दिवस देश भर में अपनी अनेक शाखाओं में मना रहे हैं तथा आज अपने उन प्रेरक पुरुषों सहित अपने आद्य संरक्षकों को भी स्मरण कर रहे हैं,जिन्होंने हमें राष्ट्रसेवा के महान कार्यों की दिशा प्रदान की।आज हम अपने संरक्षक निवृत्त शंकराचार्य, भारतशासन द्वार पद्म भूषण विभूषित, स्वनामधन्य,ब्रह्मलीन स्वामीश्री सत्यमित्रानंद गिरि जी को अपनी भावभीनी स्मरणाञ्जलि सहित ,प्रणामाञ्जलि और श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हैं, जिनके आशीर्वाद से हम अपने संगठन के दृढ़ वृक्ष को अपने अनेक रचनात्मक प्रवृत्तियों सहित अभिसिंचित कर रहे हैं;जिसके आज57वां स्थापना समारोह के हम सब साक्षी हैं।
उक्त उद्गार हैं आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष ,भारत विकास परिषद् के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डाँ.श्रीश्याम बिहारी शर्मा जी के।
ग्वालियर शाखा द्वारा स्थानीय “स्वामीविवेकानंद सभागार”में आयोजित भारत विकास परिषद् के स्थापना दिवस कार्यक्रम में भारत माता एवं स्वामीश्री विवेकानंद के तैल चित्र पर पुष्पमाला समर्पित कर दीप प्रज्वलन कर,वन्दे मातरम के सामूहिक गान के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ ।अतिथि सत्कार एवं अतिथियों का परिचय पूर्वक ग्वालियरशाखा की अध्यक्ष डाँ. संदीपा मल्होत्रा ने प्राथमिक उद्बोधन में आगंतुक सभी का वाचिक स्वागत किया।इस अवसर पर “डाँ.पारुल बान्दिल “ने एकल गीत प्रस्तुत किया कार्यक्रम के प्रभारीडाँ. श्री किशन स्वरूप मंगल जी ने प्रास्ताविक उद्बोधन एवं स्वामीजी(मुख्य अतिथि का)का परिचय दिया।आभार एवं धन्यवाद शाखा सचिव श्री सुधीर अग्रवाल ने दिया। वन्दे मातरम् गायन प्रस्तुत कियाडाँ.श्री ईश्वरचंद्र करकरे ने।

महामण्डलेश्वर स्वामीश्री अखिलेश्वरानंद गिरि ने राष्ट्र निर्माण में भारत विकास परिषद की भूमिका एवं उसका रचनात्मक योगदान विषय पर अपने प्रेरक और सारगर्भित विचार व्यक्त किये।उन्होंने भारत विकास परिषद् के संरक्षक ब्रह्मलीन स्वामीश्री सत्यमित्रानंद गिरि के व्यक्तित्त्व को भारत विकास परिषद् के साथ रेखांकित करते हुये भारत विकास परिषद् के सम्पर्क,सहयोग,संस्कार सेवा और समर्पण जैसे महनीय ध्येय बिन्दु के साथ जोड़कर स्वामीजी के व्यक्तित्व, वक्तृत्त्व और कृतित्त्व का उल्लेख किया एवं समाज और विश्व स्तर पर समन्वय सिद्धांत की व्यवहारिकता को रेखांकित किया।

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